बुधवार, 23 सितंबर 2015

स्वयंसेवक की सिद्धता

१.मानसिक सिद्धता।
कार्यकर्ता की मानसिकता सदैव संघ योजना के      अनुसार होनी चाहिए।मानसिकता ठीक होने से  व्यवहार भी ठीक होगा तथा कर्तृत्व प्रकट होगा।
२.वैचारिक सिद्धता।
वैचारिक परिपक्वता के लिए चिन्तन।
३.शारीरिक सिद्धता।
सतत् कठोर परिश्रम करने एवं सभी प्रकार की जलवायु,वातावरण एवं परिस्थिति में रहने का अभ्यासी।
४.सामाजिक सिद्धता।
जो समाज के विरुद्ध तथा अयोग्य हो उसको छोड़ने की मानसिकता वाला।
५.सांस्कृतिक सिद्धता।
भोगवादी विचार एवं व्यवहार से बचने की सिद्धता।आवश्कतानुसार उपलब्ध वस्तुओं में ही समाधान करने वाला।
६.राजनैतिक सिद्धता।
समाज के ठीक होने से ही रामराज्य आएगा इसलिए जैसा समाज वैसे ही राजनैतिक दाल।किसी भी पद का मोह नहीं रखने वाला।व्यक्ति,जाति,भाषा,पंथ,क्षेत्र आदि से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में ही राजनीति पर विचार करने वाला।
७.संगठनात्मक सिद्धता।
जो भी योजना बनाई जाए उसका उद्देश्य स्पष्ट रहे।जैसे शाखा विस्तार,छूटे क्षेत्र में शाखा प्रारम्भ करना आदि।

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स्वयंसेवक के गुण और व्यवहार

स्वयंसेवक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए।
1. अक्षय ध्येयनिष्ठा ।
2.निरंतर साधना।
3.24 घंटे का स्वयंसेवक।
4.चरित्रवान।
5.समर्पित ।
6.अहंकार शून्य।
7.अनुशासित व संघानुकूल जीवन रचना।
8.व्यवहार कुशलता(छोटे-बड़े स्वयंसेवकों,परिवार,निवास व व्यवसाय क्षेत्र आदि के प्रति।
9.दृढ़ता (वीरव्रत जैसे :- रक्त दे सकते हैं परंतु देश की मिट्टी नही।
10.आत्मविश्वास।
11.विजिगीषु वृति।
12.आत्मनिरीक्ष।
13.तत्व व व्यवहार में एकरूपता(कथनी और करनी समान)।
14.लोकसंग्रही।
15.स्वयं के सर्वांगीण विकास के प्रति आग्रही।
16.अधिकाधिक दायित्व ग्रहण करने की मानसिकता।

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स्वयंसेवक का व्यवहार।

संघ कार्य में :-
स्वयंसेवकों के साथ परस्पर बंधुभाव, निःस्वार्थ ,निश्छल,आत्मीयता व स्नेहपूर्ण व्यवहार (पारिवारिक अनुभूति) से ध्येय की ओर बढ़ने वाला।एक दूसरे का विकास करने के प्रयत्न में संग्लन(कई बार मित्रता तो बनी रहती है परंतु संघ बीच में से निकल जाता है,यह अच्छा नहीं),
सबका गुणावलोकन करने वाला दोन्वेषण करने वाला नहीं।
स्वयंसेवकों का अधिकारियों के प्रति:-
आदर,श्रद्धा व विश्वास युक्त व्यवहार।अधिकारी के मार्गदर्शन के अनुसार जीवन में सद्गुण लाने का प्रयत्न। सदैव गुणग्रहण करने की मनोभूमिक। कार्य को उत्तरदायित्व पूर्ण तथा प्रमाणिकता से सम्पन्न करने का भाव,अनुशासन युक्त व्यवहार। बनावटी व्यवहार हमारे विकास तथा कार्य में बाधक होगा।
अधिकारियों का स्वयंसेवकों के प्रति व्यवहार:-
स्वयंसेवकों के विकास के लिए सहयोगी एवं मार्गदर्शक।कार्यवृद्धि की दृष्टि से विधि-निषेध सहित बताये गए व्यवहार को अपने जीवन में भी क्रियान्वित करने वाला। पक्षपात रहित व आत्मीयतापूर्ण व्यवहार।स्वयंसेवकों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाते हुए उनका संघ से सीधा सम्बन्ध जोड़ने वाला।माता जैसा वात्सल्य,पिता जैसा हितचिंतक,बड़े भाई जैसी आत्मीयता,मित्र जैसी अभिन्नता।
समाज के प्रति व्यवहार:-
समाज के प्रति श्रद्धाभावी।सदैव समाज के हित के लिए चिंतन करने वाला,समाज के प्रत्येक घटक से बन्धुभाव, समाज के सुख-दुःख में संवेदनाओं के साथ तादात्म्य भाव।भीषण परिस्थितियों में भी देश एवं समाज कार्य के लिए सदैव तत्पर रहने वाला(संकट व चुनौतियों के समय आगे और पुरस्कार के समय सदैव पीछे रहने वाला)।
अहंकार शून्य,सेवाभावी,स्नेहिल।व्यवसाय व नौकरी में प्रमाणिक।परिवार,वर्ग,भाषा,संस्था,प्रान्त,सम्प्रदाय आदि के मिथ्याभिमान से दूर रहने वाला।
व्यक्तिगत जीवन में व्यवहार:-
मृदुभाषी,निश्छल,पारदर्शी,नियमित,व्यस्थाप्रिय।
समय नियोजक,प्रसन्नचित,मितव्ययी,
व्यवहारकुशल,संवेदनशील,समयपालक।
व्यक्तिगत,पारिवारिक,सामाजिक तथा सांघिक जीवन में कर्तव्यों को आचरण में प्रकट करने वाला।सभी कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए संघ कार्य को प्राथमिकता देने वाला व स्वदेशी का आग्रही।
परिवारजनों में संघकार्य के प्रति श्रद्धा,आत्मीयता एवं विश्वास निर्माण करने वाला।
संघ के संस्कारों के कारण जीवन में सद्गुण सम्पदा बढ़ रही है'ऐसा परिवारजनों को आभास कराने वाला।
किसी भी प्रकार के संकट(आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक आदि)आने पर भी मन का संतुलन बनाये रखने वाला।
सर्वत्र व्यवहार में तादात्म भाव(Adjustment)मर्यादापूर्ण व्यवहार,विवेकबुध्दि ।"यद्यपि शुद्धम् लोक विरुध्दं न करणीयं न चरणीयं।।"

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