सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

राष्ट्रीय एकता के लिए सामाजिक समता व समरसता आवश्यक

समता ऊपरी(बाह्य) एवं भौतिक समानता का शब्द है, जबकि समरसता आन्तरिक घनिष्टता का परिचायक है। समाज में समता व समरसता न होने से ही विगत इतिहास में हमें पराजय का मुँह देखना पडा था। आज भी इसी कमी का लाभ उठाकर हिन्दु समाज को बाँटने व देश को तोड़ने का षड़यंत्र संसार की बड़ी शक्तियाँ कर रही हैं। विशेषकर हिन्दु समाज जाति-बिरादरी, ऊँच-नीच व भाषा प्रान्त में विभाजित हो रहा है। कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए अगड़े-पिछड़े के भेद खड़े कर रहे हैं। इन भेदों को समाप्त करने के लिए समरसता आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है कि समाज स्वस्थ व सुगठित रहे। जैसे शरीर के सभी अंगों में सामंजस्य व समरसता रहने पर ही शरीर स्वस्थ रहता है। अतः राष्ट्र की एकता के लिए भी सम्पूर्ण समाज का सुसंगठित होना आवश्यक है।

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राजनीति की और संघ दृष्टिकोण

राजनीति या राज्य संस्था, समाज के विभिन्न अंगों में से एकदेश ने 'लोकतान्त्रिक शासन तन्त्र' को स्वीकार किया जो विश्व में प्रचलित अन्य सभी शासन तन्त्रों से श्रेष्ठ है। परिवार तंत्र ,राज्यतंत्र आदि व्यवस्थाएं धीरे-धीरे काल बाह्यअन्य क्षेत्रों "वाचनालयों, व्यापार मण्डलों, सहकारी बैंकों" आदि में भी लोकतन्त्र लोकप्रियलोकतन्त्र में व्यवसायिक प्रतिनिधत्व भी हो व इसकी भारतीय परिस्थिति के अनुसार रचना हो। इस पर ध्यान देना हमारा सामाजिक दायित्व है।
संघ का दृष्टिकोण:- सम्पूर्ण समाज का संघठन करना, किसी गुट या सम्प्रदाय का नहीं। राजनीति में राष्ट्रीय विचारों वाले तथा देश के प्रति कर्तव्यभावी लोग चुने जायें। राष्ट्रहित सर्वोपरि , व्यक्ति, परिवार, जाति, पन्थ, क्षेत्रदल आदि से ऊपर राष्ट्रहित में मतदान करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य , मतदान से पहले "मतदाता जागरण" के कार्य होने चाहिए

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