राष्ट्रीय एकता के लिए सामाजिक समता व समरसता आवश्यक
समता ऊपरी(बाह्य) एवं भौतिक समानता का शब्द है, जबकि समरसता आन्तरिक घनिष्टता का परिचायक है। समाज में समता व समरसता न होने से ही विगत इतिहास में हमें पराजय का मुँह देखना पडा था। आज भी इसी कमी का लाभ उठाकर हिन्दु समाज को बाँटने व देश को तोड़ने का षड़यंत्र संसार की बड़ी शक्तियाँ कर रही हैं। विशेषकर हिन्दु समाज जाति-बिरादरी, ऊँच-नीच व भाषा प्रान्त में विभाजित हो रहा है। कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए अगड़े-पिछड़े के भेद खड़े कर रहे हैं। इन भेदों को समाप्त करने के लिए समरसता आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है कि समाज स्वस्थ व सुगठित रहे। जैसे शरीर के सभी अंगों में सामंजस्य व समरसता रहने पर ही शरीर स्वस्थ रहता है। अतः राष्ट्र की एकता के लिए भी सम्पूर्ण समाज का सुसंगठित होना आवश्यक है।