बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

गुरु दक्षिणा का उद्देश्य

गुरुपूजा और समर्पण भाव ---
संस्कृत की "गृ" धातु जिसका अर्थ है अज्ञान "रू" प्रत्यय लगाने से संयुक्त शब्द होता है "गुरु" जिसका अर्थ होता अज्ञान को हरने वाला। गुरु मनुष्य जीवन के विकास में सबसे महत्वपूर्ण है। किसी भी उपकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना हिन्दु समाज की विशेषता है। गुरुपूर्णिमा पर्व का महत्व इसी दृष्टि से समझने की आवश्कता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा हिन्दु समाज में गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है। भारतीय समाज में वैदिक काल के समय से ही गुरु शिष्य परम्परा विद्यमान रही है। अपने यहाँ मान्यता है कि बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं। जीवन को सही दृष्टि गुरु के मार्गदर्शन से ही प्राप्त होती है। गुरुजनों के प्रति पूज्यभाव यह हमारी प्रकृति है। आध्यात्मिक विद्या का उपदेश देने और ईश्वर का साक्षात्कार करा देने वाले गुरु को अपनी भूमि में साक्षात् परम ब्रह्म कहा गया है। महर्षि दयानन्द जी ने भी गुरु का महत्व समझाते हुए कहा है कि "गु" अर्थात् अन्धकार, "रु" अर्थात् मिटाने वाला गुरु अर्थात् अन्धकार को मिटाने वाला ,अर्थात् ज्ञान देने वाला। इस सृष्टि में "माँ" ही प्रथम गुरु है। भारतीय संस्कृति में व्यक्ति ही नहीं तत्व को भी गुरु के रूप में स्वीकार करने की परम्परा विद्यमान है। गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन एवं समर्पण का प्रतिक "गुरु दक्षिणा" यह हमारी प्राचीन पद्धति है जैसे :- आरुणि, शिवाजी, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, कौत्स आदि। संघ में व्यक्ति के स्थान पर तत्व निष्ठा का आग्रह किया गया। संघ ने पवित्र भगवाध्वज को गुरु स्थान पर स्वीकार किया क्योंकि यह राष्ट्र का प्रतिक है। आवश्कता है जिसे गुरु माना उसकी नित्य पूजा अर्थात् उसके गुणों को अपने अन्दर लाने की। "पतत्वेष कायो" एक संकेत मात्र है। इसका वास्तविक अर्थ केवल काया(शरीर) तक सीमित नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है मेरा शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा तथा वह सब कुछ जो मेरे पास किसी भी रूप में है उस सबका समर्पण।
श्री गुरुदक्षिणा ? :- वर्ष में एक बार स्वयंसेवक श्रद्धाभाव से ध्वज के सम्मुख उपस्थित होकर उसका पूजन करते हैं अर्थात् श्री गुरु के सम्मुख दक्षिणा अर्पित करते हैं। और श्रीगुरुदक्षिणा में धन के समर्पण के साथ-साथ 'मैंने दिया' इस भाव का भी समर्पण है अर्थात् मन में यह भाव भी नही आना चाहिए।
यह वार्षिक शुल्क, चन्दा, संग्रह, दान, सहयोग राशि जैसा नहीं, गुरुदक्षिणा में जो दाएं हाथ से अर्पित किया वह बायें हाथ को भी पता न चलने पाएं अर्थात् कही भी इसकी चर्चा व प्रतिफल की लेशमात्र भी अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। यह 365 दिन का संग्रहीत अत्यंत श्रद्धापूर्वक, पवित्र भाव से, अपनी दैनिक आवश्कताओं में से कुछ कटौती करते हुए सञ्चित धन को गुरु राष्ट्रदेव अर्थात् भगवाध्वज के श्रीचरणों में विनीत भाव से समर्पित करना ही गुरुदक्षिणा हैं।

समर्पण के परिणाम--
स्वयंसेवकों में समर्पण भाव की निरन्तर वृद्धि होना।

समर्पण राशि की चर्चा व प्रतिफल नहीं के परिणाम---
स्वयंसेवकों में हीनता तथा अहंकार नहीं।

365 दिन का संग्रहीत समर्पण का परिणाम---
नित्य संग्रहण कर दक्षिणा के संस्कारों के कारण धीरे-धीरे लाखों स्वयंसेवकों में समाज के प्रति दायित्व बोध जागृत होता है।

संघठन आत्मानिर्भर होगा।

संघठन पर किन्हीं बाहरी लोगों का वर्चस्व नहीं होगा।

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13 टिप्पणियाँ:

यहां 18 जुलाई 2019 को 5:49 pm बजे, Blogger जयदेव संगल ने कहा…

बहुत सुंदर

 
यहां 20 जुलाई 2019 को 6:24 pm बजे, Blogger Free Web tools 4u ने कहा…

अति सुंदर

 
यहां 27 जुलाई 2019 को 4:17 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

गागर मे सागर

 
यहां 28 जुलाई 2019 को 8:54 am बजे, Blogger SANJEEV BISHT ने कहा…

सुन्दर

 
यहां 4 सितंबर 2019 को 5:39 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

अति सुन्दर।

 
यहां 23 अगस्त 2020 को 1:24 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

मुझे काफी पसन्द आया और मैने कॉपी किया🙏🚩

 
यहां 28 अगस्त 2020 को 11:32 am बजे, Blogger Unknown ने कहा…

अति सुन्दर

 
यहां 4 सितंबर 2020 को 8:41 pm बजे, Blogger Anukul ने कहा…

अदभुत

 
यहां 8 सितंबर 2020 को 11:40 am बजे, Blogger Unknown ने कहा…

अति सुन्दर उद्बोधन

 
यहां 22 जुलाई 2021 को 3:13 am बजे, Blogger Unknown ने कहा…

Vistrut jankari mili,

 
यहां 1 अगस्त 2021 को 4:36 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

अच्छी ब्याख्या गुरु दक्षिणा समर्पण के ऊपर

 
यहां 5 अगस्त 2021 को 2:21 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

शानदार

 
यहां 15 जून 2025 को 4:00 pm बजे, Blogger https://www.kavibhyankar.blogspot.com ने कहा…

बहुत अच्छा ब्लॉग है इस वर्ष शाखा बौद्धिक पत्र तैयार करने का दायित्व है मेरे पास तो इस ब्लॉग से काफी साहयता मिलेगी

 

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