शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

चन्द्रशेखर आजाद का सदाचार

एक बार परम वीर चन्द्रशेखर आजाद जी झाँसी में थे। वह बुंदेलखण्ड की एक कम्पनी में मोटर चलाना सीख रहे थे। साथ–साथ क्रांतिकारी कार्यों में भी लगे हुए थे। उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब थी, उन्हें चने खाकर समय व्यतीत करना पड़ता था। एक दिन चन्द्रशेखर आजाद जी के पास केवल एक आना ( रुपए का सोलवां भाग ) ही था। उन्होंने दिन भर कुछ भी नहीं खाया था। दिन भर भूखे होने के कारण शाम को उनकी भूख काफी तीव्र हो गयी।
चन्द्रशेखर जी  एक आँने के भुने हुए चने ले आए। वे चने खा रहे थे कि चनों में से एक आँने ओर निकल आये। एक और एक आँने देख वह आश्चार्य चकित हो गए। एक बार तो उनके मन में यह विचार आया कि इससे कल का काम भी चल जायेगा, परसों की चिंता फिर करेंगे। किन्तु तभी उनके मन ने उनको चेताया और वह एकदम गम्भीर हो गए और सोचने लगे की यह एक आँने मेरी कैसे हो सकती है ? लगता है यह भूल से मेरे पास आ गयी है। चने खाकर चन्द्रशेखर आजाद जी  ने एक लोटा पानी पी लिया। फिर वह चने बेचने वाले भाई के पास गए और बोले, ” क्यों भाई, तुमने मुझे एक आँने के चने दिए और एक आना चने में भी डाल दी ?

ऐसा करोगे तो क्या कमाओगे?” चने बेचने वाला जब तक कुछ समझता और उत्तर देता , चन्द्रशेखर आजाद जी उसकी एक आँने उसे देकर लौट चले।गरीब चने बेचने वाला कभी वापस की हुई एक आँने को देखता तो कभी सड़क पर जाते हुए उस युवक को। मन ही मन वह सत्यनिष्ठ चन्द्रशेखर आजाद जी की प्रशंसा कर रहा था। चन्द्रशेखर आजाद जी इस संसार की भीड़ को चीरते हुए पता नहीं कहाँ चले गए ? परन्तु उनका यह सदाचार हम सबके हृदयों पर हमेशा अंकित रहना चाहिए।

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