सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

प्रार्थना का विकास क्रम

"प्रार्थना का विकास कब व कैसे" ?
संघ में प्रचलित वर्तमान प्रार्थना व आज्ञायें ,घोष रचनाएं ,गणवेश आदि संघ के प्रारम्भ से ऐसी नहीं थी।समय-समय पर आवश्कतानुसार उनमें परिवर्तन होता रहा है , जैसे अभी विजय दशमी 2016 में गणवेश में परिवर्तन हुआ है ,जिसमें निक्कर के स्थान पैंट और मोज़े का हुआ है।संघ जैसे विकासशील और गतिमान संघठन के लिए उसकी संरचनाओं का लचीलापन और देश-काल और परिस्थिति के अनुसार उनमें योग्य परिवर्तन करने की संघ की सिद्धता उसकी शक्ति सिद्ध हुई है।प्रारम्भ में (1926) में शाखा के शारीरिक व बौद्धिक कार्यक्रमों के बाद जो प्रार्थना बोली जाती थी , उसमे एक पद मराठी व एक पद हिंदी का था।मराठी पद उन दिनों महाराष्ट्र की अनेक प्राथमिक विद्यालयों व व्यायामशालाओं में बोली जाने वाली एक प्रमुख वन्दना थी तथा हिन्दी पद उत्तर भारत में गाई जाने वाली प्रमुख वन्दना। इसी वन्दना में कुछ आवश्यक परिवर्तन करके प्रार्थना का तत्कालीन प्रार्थना से आवश्यक पदों को संघ की प्रार्थना के लिए चुना गया।तत्कालीन प्रार्थना के अन्त में छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरणा स्रोत्र श्री समर्थ रामदास स्वामी जी का जयघोष बोला जाता था ।

वह प्रार्थना इस प्रकार थी :-

मराठी :-
"नमो मातृभूमि जिथे जन्मलो मी ।
नमो आर्यभूमि जिथे वाढलो मी ।।
नमो धर्मभूमि जियेच्याच कामी ।
पड़ो देह माझा सदा ती नमीमी ।।"

हिन्दी :-
"हे गुरु श्री रामदूता , शील हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों से ,मुक्त हमको कीजिये।।
लीजिये हमको शरण में , राम पन्थी हम बनें,
ब्रह्मचारी धर्म रक्षक , वीरव्रत धारी बनें ।।
"राष्ट्र गुरु श्री समर्थ रामदास स्वामी की जय !"

तत्कालीन समय में संघ कार्य विधर्भ प्रान्त तक ही सीमित था किन्तु जैसे-जैसे संघ कार्य का विस्तार संपूर्ण भारतवर्ष में फैलने लगा, तो प्रार्थना की भाषा में परिवर्तन का अनुभव होने लगा।फरवरी 1939 में सिन्दी में एक बैठक हुई उसमें प.पू.डॉक्टर जी , प.पू.श्री गुरु जी ,श्री तात्याराव तैलंग,माननीय बाबासाहब आप्टे, विट्ठलराव पतकी, श्री बाबाजी सालोडकर,श्री कृष्णराव मोहरीर, नाना साहब टालाटूले आदि कई कार्यकर्ता उपस्थित थे।इसी बैठक में विचारविमश कर सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ की अब प्रार्थना को उस भाषा में होना चाहिए जो समस्त समाज व सम्पूर्ण भारतवर्ष में स्वीकार्य हो।इसी बैठक में संस्कृत भाषा में प्रार्थना का ऐतिहासिक निर्णय हुआ ,क्योंकि संस्कृत भाषा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी तथा राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ने वाली है और समस्त हिन्दु समाज को स्वीकार्य है। अब प्रार्थना का गद्य और पद्य प्रारूप का दायित्व क्रमसः नाना साहब टालटुले व श्री नरहरि नारायण भिड़े जी को दिया गया।इस प्रार्थना में संघ का लक्ष्य , लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग , लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक गुण , संघ के अधिष्ठान , संकल्प आदि सभी कुछ को समाहित किया गया । इस प्रार्थना का प्रथम गायन माननीय यादवराव जोशी जी के द्वारा 1940 में पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में किया गया।इस प्रार्थना में पूर्व प्रार्थना के सभी महत्वपूर्ण भावों का समावेश तो किया ही गया , साथ ही उसमे कुछ और अभीष्ट भावों को भी समाविष्ट कर उसे और अधिक समृद्ध किया गया ,प्रार्थना संघ का मंत्र है ।संघ का सिद्धांत , उद्देश्य , कार्यपद्धति आदि विभिन्न बातों का समावेश सूत्र रूप में किया गया है।अतः प्रत्येक स्वयंसेवक को प्रार्थना कण्ठस्थ उसके स्वर , उच्चारण , शब्दार्थ और भावार्थ आदि का सम्यक ज्ञान आवश्यक है। प्रार्थना मात्र पुरुषार्थवादी है , इसलिए कार्य हम करेंगे ,प्रयास हम करेंगे न की भगवान ,किन्तु उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक गुणों की पूर्ति भगवान से मांगी गयी है ऐसा जानना चाहिए।

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2 टिप्पणियाँ:

यहां 12 मार्च 2019 को 7:13 pm बजे, Blogger Dr. NARENDRA KUMAR ROY ने कहा…

नमस्ते । अच्छा आलेख लिखा आपने।

 
यहां 28 फ़रवरी 2022 को 12:12 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

🚩जयतु हिन्दूराष्ट्रम्🚩

 

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