सोमवार, 1 अगस्त 2016

"भगवा ध्वज"

राष्ट्रजीवन में ध्वज का स्थान :-
स्फूर्ति केंद्र,एकता तथा दृढ़ता के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान ध्वज का है। विजय चिन्ह विजिगीषु मनोवृति का प्रतिक। यश,सफलता और सम्मान का प्रतिक।

ध्वज का निर्माण कैसे होता है।
  ध्वज अनायास ही नहीं बनते। उसके पीछे होता है राष्ट्र का इतिहास,परम्परा तथा जीवन दृष्टि।अनेक आधुनिक राष्ट्रों के ध्वजों के पीछे केवल राजनीतिक घटनाएं हैं। क्योंकि वह सभी देश( राष्ट्र )नये बने हैं,परन्तु अपना प्राचीन राष्ट्र है,इसी कारण प्राचीन ध्वज "भगवा-ध्वज" ही राष्ट्र का परम्परागत पुरातन ध्वज है।

भगवा ध्वज पुरातन ध्वज
वेदों में, "अरुणः सन्तु केतवाः" का वर्णन उसके हल्दी जैसे रंग का वर्णन आता है। आदिकाल से जनमेजय तक सभी चक्रवर्ती राजाओं ,सम्राटों,महाराजाओं ,धर्मगुरुओं ,अवतारों और सेनानायकों का ध्वज यही था । जैसे रघु,राम,अर्जुन,चन्द्रगुप्त,शंकरादि, विक्रमादित्य,चन्द्रगुप्त मौर्य, स्कन्दगुप्त,यशोधर्मा,हर्षवर्धन,पृथ्वीराज,महाराणा प्रताप,शिवाजी,गुरुगोबिंद आदि सभी ने इसी ध्वज की रक्षा के लिए संघर्ष किये ।

भगवा रंग का महत्व
भगवा रंग त्याग, ज्ञान, पवित्रता और तेज का प्रतिक है, यज् की ज्वाला से निकली अग्नि-शिखाओं को लिए हुए। प्राचीन काल में जन-कल्याण की भावना से तप-साधना में रत सर्वस्वार्पण करने वाले सन्यासियों का बाना व उनका आदर्श सम्मुख उपस्थित करने वाला।

तिरंगा (राजध्वज) भारत में कैसे आया।
  क्रांतिकारी जब देश से बाहर यूरोप में गए तो वहाँ फ्रांस और इटली की क्रांति गाथाएँ सुनी। वहां के क्रांतिकारियों के झण्डे तिरंगे थे, इसलिए अपना भी तिरंगा बनाने की इच्छा बनी।

1926 भगवा ध्वज को राष्ट्र ध्वज स्वीकारा
  
1926 को कराँची कांग्रेस में "झंडा कमेटी" की रिपोर्ट में भगवा ध्वज को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया गया था, परन्तु तुष्टिकरण के कारण फिर से बदल दिया गया और उसकी नई व्याख्या की।
संविधान के अनुसार अशोक चक्रधारी तिरंगा राष्ट्र (राज) ध्वज है। स्वराज एवं राष्ट्र के घटक होने के नाते हम तिरंगे का आदर करते हैं। उसके मान-सम्मान के लिए सर्वस्वार्पण को सिद्ध हैं।

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