आद्य सरसंघचालक जी के जीवन का प्रेरक प्रसङ्ग
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक परम् पूज्नीय "डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार" जी ने किसी कार्य हेतु संघ के एक स्वयंसेवक को एक कार्य की जिम्मेदारी दी। उस स्वयंसेवक ने वह कार्य किसी ओर को कह दिया और उसने भी आगे किसी ओर को कह दिया। इस प्रकार वह कार्य कई स्वयंसेवकों के पास पहुँच गया परन्तु वह कार्य पूरा नहीं हुआ। इस त्रुटि को सही करने के लिए पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने स्वयंसेवकों को डांटा नहीं। अपितु पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने एक ऐसा उदाहरण सभी स्वयंसेवकों के समक्ष प्रस्तुत किया कि जिससे सभी स्वयंसेवक सीख लें सकें कि, अपना कार्य दूसरे पर टालने से वह कार्य अधर में ही लटका रह जाता है। अगर वह कार्य पूरा होता भी है, तो उसमें कई कमियां रह जाती हैं।
इसके लिए उन्होंने स्वयंसेवकों के समक्ष एक बहुत ही रोचक प्रसंग प्रस्तुत किया। एक बार नागपुर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर एक कार्यक्रम था। श्रीमान जी स्वयं ही सभी अतिथियों का बड़े सत्कार के साथ स्वागत कर रहे थे। उन्होंने एक सुन्दर से पानदान में पान सजवा रखे थे। कोई भी अतिथि पान नहीं ले रहा था क्योंकि पानदान में चुना तो था ही नहीं। एक अथिति ने श्रीमान जी को कह दिया की श्रीमान चुना नहीं है चुना मंगवा लीजिऐ। श्रीमान जी ने अपने एक वरिष्ठ कर्मचारी को कहा की जाओ जल्दी से चुना ले आयो।
उस वरिष्ठ कर्मचारी ने अपने निचे के नौकर को वह काम कह दिया। उस नौकर ने वह काम आगे किसी ओर नौकर को कह दिया। इस प्रकार थोड़ी ही देर में कार्यक्रम में चुना – चुना की आवाज गूंजने लगी। उस कार्यक्रम में पूज्य डॉ हेडगेवार जी भी गए हुए थे। जिन श्रीमान के घर कार्यक्रम था, उनसे पूज्य डॉ हेडगेवार जी की घनिष्टता भी थी। यह नजारा देख पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने अपने एक परिचित को भिजवा कर चुना मंगवा लिया और पानदान में रख दिया।
पूज्य डॉ हेडगेवार जी के इस उदाहरण से यह प्रेरणा मिलती है, की कार्य करने से सम्पन्न होता है न की आज्ञा चलाने से। आज देश के लिए चिल्लाने वाले कितने ही लोग हैं, परन्तु देश सेवा को अपना कार्य समझ कर निष्ठा से करने वाले काफी कम हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक इस प्रकार के नहीं होने चाहिये। स्वयंसेवक तो सच्ची निष्ठा से कार्य के प्रति प्रयत्नशील होने चाहिये। यही ज्ञान पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने इस प्रसंग के उदाहरण से सभी स्वयंसेवकों को दिया।
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