शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

शाखा किसे कहते हैं?

संगठित जीवन के लिए आत्मीयतापूर्ण सम्बन्ध और अनुशासनबद्ध रूप में कार्य करने की सिद्धता,दोनों आवश्यक हैं।इसलिए हम लोगों ने प्रतिदिन,निश्चित स्थान तथा निश्चित समय पर एकत्रित होकर,भिन्न-भिन्न प्रकार से कार्यक्रमों के माध्यम से इन गुणों को प्राप्त करने का संकल्प किया है।किसी एक स्थान पर एकत्र आना,पवित्र ध्वज को प्रणाम करना,उसकी छत्रछाया में अनुशासन और आत्मीत्यता बढे ऐसे कार्यक्रमों का अभ्यास करना,फिर अपने ध्येय का स्मरण करने के लिए अपनी पवित्र प्रार्थना बोलना,ध्वज को प्रणाम कर,ध्वज को उस दिन के लिए विसर्जित कर अपने-अपने दैनिक जीवन के कार्यों को ध्येयानुरूप समर्पण भाव से करते रहने की प्रेरणा लेकर घर वापस जाना,अपने कार्य का स्वरुप है।इस प्रकार संगठित जीवन निर्माण करने के लिए हमने बड़ी सरल पद्धति सामने रखी है।इसे ही हम अपनी शाखा कहते हैं।
                            -प.पू.श्री गुरूजी
संघ की शाखा खेल खेलने अथवा कवायद(परेड) करने का स्थान मात्र नहीं है,अपितु सज्जनों की सुरक्षा का बिन बोले अभिवचन है,तरुणों को अनिष्ट व्यसनों से मुक्त रखने वाला संस्कार पीठ है,समाज पर अकस्मात् आने वाली विपत्तियों अथवा संकटों में त्वरित, निरपेक्ष सहायता मिलने का आशा केंद्र है,महिलाओं की निर्भयता एवं सभ्य आचरण का आश्वासन है,दुष्ट तथा देशद्रोही शक्तियों पर अपनी धाक स्थापित करने वाली शक्ति है ,और सबसे प्रमुख बात यह है, कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सुयोग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने हेतु योग्य प्रशिक्षण देने वाला विद्यापीठ हैं।
                         -माननीय बालासाहेब देवरस

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संघ का क्रमिक विकास व प्रमुख घटना क्रम

सन् 1925 से 1940 तक

संघ की स्थापना विजयदशमी(दशहरा) वि.सं.1982 तदनुसार (27 सितम्बर1925) को पूज्य डॉक्टर "केशव राव बलिराम हेडगेवार" जी ने अपने घर में 20 लोगों को लेकर की।

17 अप्रैल 1926
संघ का नाम "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" ।

28 मई 1926
"मोहिते के बाड़े" में विधिवत् "दैनिक शाखा" प्रारम्भ।

19 दिसम्बर 1926
सभी मा.संघ चालकों ने मिलकर पू. डॉ. जी को संघ का प्रमुख(सरसंघचालक) चुना।

1927
प्रथम बार 'अधिकारी शिक्षण वर्ग'(O.T.C./संघ शिक्षा वर्ग ।

1928
गुरु पूर्णिमा के दिन परम पवित्र 'भगवध्वज' को गुरु के रूप  मान्यता व प्रथम "श्री गुरु दक्षिणा" व "प्रतिज्ञा" कार्यक्रम संपन्न ।

1928
प्रथम "शीत शिविर"एवं  घोष ,गीत सह पथ संचलन

1929
19नवंबर संघ स्थान पर प्रथम बार "सरसंघचालक"प्रणाम व औपचारिक रूप से 'बाबा साहब आप्टे,दादाराव परमार्थ,रामभाऊ जामगड़े व गोपालराव येरकुंटवार प्रचारक के रूप में निकले।

1930
21 जुलाई "जंगल सत्याग्रह"में भाग लेने का निश्चय कर पू. डॉ. जी ने डॉ. पारंजपे जी को  कार्यवाहक "सरसंघचालक" नियुक्त किया।

1934
वर्धा शिविर में महात्मा गांधी का आगमन छुआ-छुत विहीन (समरस भाव)स्वयंसेवकों को देख कर अत्यंत प्रभावित ।

1935
प्रथम बार नागपुर से बाहर पुणे में प्रथम व द्वितीय वर्ष के वर्ग प्रारम्भ।

1938
लाहौर में प्रथम व द्वितीय वर्ष के वर्गों का आयोजन।

1940
प्रथम चिंतन बैठक संपन्न,बैठक में वर्तमान संस्कृत आज्ञायें व प्रार्थना निश्चित हुई।व
20 जून को पू.डॉ.जी ने अपने देहावसान से एक दिन पूर्व प.पू.श्री गुरु जी को द्वितीय सरसंघचालक मनोनीत किया।

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