अमृत वचन
1. जब कोई मनुष्य अपने पूर्वजों के बारे में लज्जित होने लगे, तब समझ लेना उसका अंत हो गया। मैं यद्धपि हिन्दू जाति का नगण्यघटक हूँ, किन्तु मुझे अपनी धर्म पर गर्व है, अपने पूर्वजों पर गर्व है। मैं स्वयं को हिन्दू कहने में गर्व का अनुभव करता हूँ ।
स्वामी विवेकानन्द
2.हमने बहुत – बहुत आंसू बरसायें हैं। अब हमें कोमल भाव धारण करने का समय नहीं है। कोमलता की साधना करते – करते हम लोग जीते – जी ही मुर्दे हो रहे हैं। हमारे देश के लिए इस समय आवश्यकता है – लोहे कि तरह ठोस मांस पेशियां और मजबूत स्नायु वाले शरीरों की। आवशयकता है इस तरह इच्छा – शक्ति सम्पन्न होने की, ताकि कोई भी उसका प्रतिरोध करने में समर्थ न हो।
स्वामी विवेकानन्द
3.भारत में हमारे विकास पथ में दो बड़ी बाधाएं है, सनातन परम्पराओं की कमजोरियाँ और यूरोपीय सभ्यता की बुराइयाँ। मैं दोनों में से सनातन परम्पराओं की कमजोरियाँ अपनाना पसंद करूँगा।
स्वामी विवेकानन्द
4.एक लक्ष्य निर्धारित कीजिये, उस लक्ष्य को ही अपना जीवन बनाइये! उस पर हमेशा विचार कीजिये, उसको पूरा करने का ही स्वप्न देखिये! उस लक्ष्य के लिए ही जियें और अन्य सभी बातों को छोड़ दें । सफलता का यही मार्ग है।
स्वामी विवेकानन्द
5.आगामी पचास वर्षों में हमारा केवल एक ही विचार केन्द्र होगा और वह है हमारी महान मातृ-भूमि भारत। हमारा भारत, हमारा राष्ट्र केवल यही हमारा देवता है। वह अब जाग रहा है, हर जगह जिस के हाथ हैं, हर जगह पैर हैं, हर जगह कान हैं, जो सब वस्तुओं में व्याप्त है। इस महान देवता की पूजा में सब देवों की पूजा है।
स्वामी विवेकानन्द
6.जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
स्वामी विवेकानन्द
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