शनिवार, 26 सितंबर 2015

संघ स्थापना की पृष्ट भूमि।

संघ की आवश्यकता क्यों?
प.पू. डॉ. हेडगेवार जी अपने समकालीन प्रायः सभी सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक संघठनों के कार्यों से जुड़े रहे, इससे उन्हें कुछ अनुभव हुए जिसके कारण हमें स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायक सिद्ध हुए।
• अपने समाज की दुर्बलताएँ,अपनी कमजोरियों
  स्वार्थपरता,आत्महीनता,स्वाभाविक देशभक्ति
  एवं संग़ठन का अभाव।
• राष्ट्रीय की भ्रामक कल्पना।
• हिन्दू समाज को आत्मगौरव के अभाव में
  हिन्दू कहने में लज्जा का अनुभव।
• देशभक्ति की स्वाभाविक भावात्मक कल्पना
  का अभाव।
• संग़ठन के अभाव में सभी आन्दोलनों का बीच में
  ही रुक जाना ।
• कुछ क्रांतिकारियों तथा सत्याग्रहियों के प्रयास
  से स्वतंत्रता नहीं मिलेगी,जब तक पूरा देश      
  स्वाभाविक देशभक्ति एवं  के साथ खड़ा नहीं होगा।
• कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति
  आत्मघातक।
• राजनीति सब समस्याओं का समाधान नहीं।
• ऐसे अनेक अनुभवों में से डॉ. जी ने निष्कर्ष
  निकाला की देश का भाग्य हिन्दू के साथ जुड़ा है,
  वही इस देश का राष्ट्रीय समाज है। स्वतंत्रता तथा
  राष्ट्र निर्माण हेतु देशभक्त, चरित्रवान
  अनुशासित तथा निजी अहंकार से मुक्त लोगों का
  संग़ठन आवश्यक है। ऐसा संग़ठन देश पर आने
  वाली हर विपति का सामना कर सकेगा।
• डॉ. जी ने घोषणा की कि "भारत एक हिन्दू राष्ट्र
  है।"संग़ठन में ही शक्ति है", 'शक्ति से सभी कार्य
  संभव।
• संग़ठन का आधार व्यक्ति है,पैसा या उपकरण
  नही।
• डॉ.जी द्वारा संग़ठन हेतु शाखा रूपी अनूठी
  कार्यपद्धति का निर्माण।
• आलोचनाओं से निराश न होते हुए सतत् कार्य में
   लगे रहना तथा अपने जीवन काल में ही भारत के
   सभी प्रांतों में संघ कार्य पहुँचाना।
• अपना पूरा जीवन राष्ट्रकार्य हेतु अर्पित कर प्रचारक
  पद्धित का आविष्कार किया।

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